Monday, October 19, 2009

धर्म - आत्मा का विज्ञान

धर्म - धर्म अनेकार्थक शब्द है । हमें उन अर्थों को उन सन्दर्भों में समझने का प्रयत्न करना चाहिए । धर्म का शाश्वत अर्थ है वस्तु का स्वभाव । धर्म के कृत्रिम रूप है - समाजिक, राष्ट्रीय, लौकिक आदि परम्पराएँ व विधि-निषेध ।

आत्मा - आत्मा अर्थात जीव, चैतन्य । यह एक विलक्षण द्रव्य है । जीव के अस्तित्व को ही जीवन की संज्ञा से अभिहित किया है । अस्तित्व तो पदार्थ का भी है परन्तु उसे जीवन नहीं कहा जाता ।

विज्ञान - विज्ञान शब्द आज वर्तमान Science (साइन्स) के अर्थ में अधिक प्रचलित है । जैन दर्शन में विज्ञान का एक अर्थ है हेय और उपादेय का विवेक । पहले ज्ञान होता है फिर विज्ञान होता है । विज्ञान का एक अन्य अर्थ है प्राकृतिक नियमों पर आधारित अन्वेषन । कल्पना यथार्थ से परे भी होती है पर विज्ञान केवल यथार्थ को प्रकट करता है ।

चिर अतीत से मानव सृष्टि के रहस्यों को खोजता रहा है । जैन दर्शन इन सब रहस्यों को अनावृत करता है । वह इस विलक्षण लोक-अलोक व जीवन से सम्बन्धित प्रश्नों को समाहित करता है ।

यह आकाश, पदार्थ, जीव आदि संसार की प्रत्येक वस्तु अनादि काल से अस्तित्व में है । यह एक वैज्ञानिक तथ्य है । जिसका अस्तित्व है उसकी न कोई आदि है न कोई अन्त है । आदि और अन्त अस्तित्ववान द्रव्यों के विभिन्न पर्याय परिवर्तन को ही कहा जाता है । कागज अस्तित्व में नहीं था पर वह वृक्ष का ही रूपान्तरण है । इस संसार में नष्ट कुछ भी नहीं होता केवल रूपान्तरण होता है । इस संसार में नया कुछ भी निर्मित नहीं होता केवल रूपान्तरण होता है ।

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